समाजवादी पार्टी के संस्थापक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। दिवंगत श्री यादव 82 साल की उम्र में अंतिम सांस ली।
22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई में जन्मे मुलायम ने करीब 6 दशक तक सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिया। वो कई बार यूपी विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रहे। इसके अलावा उन्होंने संसद के सदस्य के रूप में ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा में हिस्सा भी लिया। मुलायम सिंह यादव 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में कुल 8 बार विधानसभा के सदस्य बने। इसके अलावा वह 1982 से 1985 तक यूपी विधानसभा के सदस्य भी रहे।
मुलायम सिंह यादव ने तीन बार यूपी के सीएम के रूप में काम किया। वो पहली बार 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991, दूसरी बार 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और तीसरी बार 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इन कार्यकालों के अलावा उन्होंने 1996 में एचडी देवगौड़ा की संयुक्त गठबंधन वाली सरकार में रक्षामंत्री के रूप में भी काम किया। अपने सर्वस्पर्शी रिश्तों के कारण मुलायम सिंह को नेताजी की उपाधि भी दी जाती थी। मुलायम को उन नेताओं में जाना जाता था, जो यूपी और देश की राजनीति की नब्ज समझते थे और सभी दलों के लिए सम्मानित भी थे।
यह वही पार्टी है, जिसकी मुलायम सिंह यादव ने न सिर्फ नींव रखी, बल्कि इसमें अपना खून-पसीना सब कुछ लगा दिया। मुलायम के आखिरी दिनों में जरूर पार्टी उनके बेटे अखिलेश यादव के पास थी, पर मुलायम की लोकप्रियता इतनी रही कि उन्हें पार्टी के मार्गदर्शक बनाए रखा गया।
राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव बतौर शिक्षक अध्यापन का कार्य करते थे। उन्होंने अपना शैक्षणिक करियर करहल क्षेत्र के जैन इंटर कॉलेज से शुरू किया था। दरअसल 1955 में मुलायम सिंह यादव ने जैन इंटर कॉलेज में कक्षा नौ में प्रवेश लिया था। यहां से 1959 में इंटर करने के बाद 1963 में यही सहायक अध्यापक के तौर पर अध्यापन का कार्य शुरू किया। जानकार बताते हैं कि उस दौर में उन्हें 120 रुपए मासिक वेतन मिलता था। उन्होंने हाई स्कूल में हिंदी और इंटर में सामाजिक विज्ञान पढ़ाया।
मुलायम को उनके पिता सुघर सिंह पहलवान बनाना चाहते थे।बात 60 के दशक की है। डॉ. राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर उस वक्त कई युवा राजनीति में आने लगे थे। मुलायम भी उन्हीं में से एक थे। हालांकि मुलायम का पहला शौक पहलवानी था। वो अक्सर कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते रहते थे। एक बार की बात है जब जसवंतनगर के तत्कालीन विधायक और संयुक्त सोशललिस्ट पार्टी के नेता नत्थू सिंह एक प्रतियोगिता में बतौर अतिथि आमंत्रित थे। उसमें मुलायम ने अपने से काफी बड़े उम्र के पहलवान को चित कर दिया। तालियों की गूंज से पूरा मैदान गूंज उठा। उसी वक्त नत्थू सिंह की नजर 28 वर्षीय मुलायम यादव पर पड़ी और मुलायम यादव नत्थू सिंह के शागिर्द हो गए। मुलायम ने अपनी सटीक पैंतरा के दम पर पहलवानी का अखाड़ा छोड़ राजनीति के अखाड़े में अपार सफलता पाई। राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा से जबरदस्त रूप से प्रभावित होकर पहली बार 1966 में इटावा पहुंचने के बाद उन्हें लोहिया का सानिध्य मिला। 1967 में उन्होंने लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा। वे जसवंतनगर सीट से उम्मीदवार बने और जीत हासिल की।
1967 में लोहिया के निधन के बाद सोशलिस्ट पार्टी कमजोर हुई। नतीजा यह रहा कि मुलायम सिंह यादव को भी 1969 के विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। यूपी में इसके बाद का दौर काफी उथल-पुथल भरा रहा। हालांकि, कुछ समय बाद ही किसान नेता चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल यूपी में मजबूत हो रहा था। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी ने जबरदस्त पैठ बना ली थी। लोहिया के निधन से कमजोर हो रही संयुक्त सोशलिस्ट दल को छोड़कर मुलायम भारतीय क्रांति दल के साथ हो लिए। 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव जीते और विधानसभा पहुंचे।
1974 में इमरजेंसी से ठीक पहले चरण सिंह ने अपनी पार्टी का विलय कमजोर पड़ चुकी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ कर लिया। इसी के साथ भारतीय क्रांति दल बन गया लोकदल। यह मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक करियर की तीसरी पार्टी रही। मुलायम ने इस पार्टी में रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई।
इस बीच इंदिरा गांधी सरकार के दौर में देशभर में आपातकाल लगा। इसके खिलाफ प्रदर्शन में शामिल रहने के लिए मुलायम सिंह यादव की मीसा में गिरफ्तारी हुई। इमरजेंसी के ठीक बाद 1977 में देश में जयप्रकाश नारायण की जनता पार्टी का उभार हुआ। चौधरी चरण सिंह के लोकदल का विलय इसी पार्टी में हो गया। 1977 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद राज्य में जनता पार्टी सरकार बनी। नई सरकार में मुलायम सिंह को मंत्री भी बनाया गया। हालांकि, जनता पार्टी 1980 में ही टूट गई और इसके घटक दल एक-एक कर अलग हो गए।
जनता पार्टी की टूट से कई पार्टियां बनीं। चौधरी चरण सिंह ने भी जनता पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी (सेक्युलर) बनाई। मुलायम भी चरण सिंह के साथ चले गए। 1980 के विधानसभा चुनाव में मुलायम को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में मुलायम चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर के टिकट पर चुनाव लड़े थे।
1980 के चुनाव के बाद चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर का नाम बदलकर लोकदल कर दिया गया। 1985 में राज्य में हुआ विधानसभा चुनाव में मुलायम लोकदल के टिकट पर ही जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 1987 में जब चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद जब उनके बेटे अजीत सिंह और मुलायम में विवाद हो गया। इसके बाद लोकदल के दो टुकड़े हो गए। एक दल बना अजीत सिंह का लोकदल (अ) और दूसरा मुलायम सिंह के नेतृत्व वाला लोकदल (ब)।
1989 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स घोटाले को लेकर कांग्रेस से बगावत कर अलग हुए, तब विपक्षी एकता की कोशिशें फिर शुरू हुईं। इसी के साथ एक बार फिर जनता दल का गठन हुआ और मुलायम सिंह यादव ने अपने लोकदल (ब) का विलय इसी जनता दल में करा दिया। इस फैसले का मुलायम को काफी फायदा भी हुआ और वे 1989 में ही पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए।अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई। 1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम सिंहमुलायम सिंह यादव 1980 के आखिर में उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष बने थे जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गया। मुलायम 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने थे। नवंबर 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए और कांग्रेस के समर्थन से सीएम की कुर्सी पर विराजमान रहे। अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई। 1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम सिंह की पार्टी हार गई और बीजेपी सत्ता में आई।
चार अक्टूबर 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की।मुलायम सिंह यादव ने जब अपनी पार्टी खड़ी की तो उनके पास कोई खास जनाधार नहीं था। नवंबर 1993 में यूपी में विधानसभा के चुनाव होने थे। सपा मुखिया ने बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठजोड़ कर लिया। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पैदा हुए सियासी माहौल में मुलायम का यह प्रयोग सफल भी रहा। कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से मुलायम सिंह फिर सत्ता में आए और मुख्यमंत्री बने।
2007 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह सत्ता से बाहर हो गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हालत खराब हुई तो मुलायम सिंह ने बड़ा फैसला लिया।
राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष की कुर्सी पर छोटे भाई शिवपाल यादव को बिठा दिया और खुद दिल्ली की सियासत की कमान संभाल ली। 2012 के चुनाव से पहले नेताजी ने अपने बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश सपा की कमान सौंपी। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के पक्ष में अप्रत्याशित नतीजे आए। नेताजी ने अपने बेटे अखिलेश यादव को सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी और वहीं से समाजवादी पार्टी में दूसरी पीढ़ी का आगाज हुआ।
सियासी अखाड़े के दांव -पेंच में माहिर पहलवान दिवंगत श्री मुलायम सिंह यादव ने अपनी लंबी राजनीतिक पारी में अपने दांव से कई लोगों को चित किया।
वास्तव में उनके निधन से देश में संघर्ष और समाजवाद के एक लंबे युग का अंत हो गया है।
राहुल कुमार सिंह