
तोपचांची। खोरठा के मशहूर गीतकार, कवि, पटकथा लेखक एवं निर्देशक विनय तिवारी ने कहा कि झारखंड राज्य की गठन यहां की भाषा संस्कृति हितों की रक्षा के लिए किया गया था। लेकिन अलग राज्य के गठन के बाद भी जनजातियों एवं मूलवासियों के पारम्परिक हितों की रक्षा के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है जो काफी दु:खद है। राज्य सरकार के द्वारा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के सूची में अन्य राज्यों में बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी, मगही,अंगिका को तृतीय श्रेणी एवं चतुर्थ श्रेणी की नियुक्तियों के लिए जारी जिलावार रोस्टर के सूची में बिना किसी ठोस आधार के स्थानीय भाषा की सूची में जोड़ा गया है। जो झारखंड की भाषा संस्कृति पर हमला है और झारखंडी युवाओं के साथ धोखा है। इतना ही नहीं ये झारखंड के जनजातियों और मूलवासियों के मौलिक अधिकारों का हनन है। धनबाद एवं बोकारों में भोजपुरी और मगही भाषा को क्षेत्रीय भाषा में शामील करना आश्चर्य की बात है। सरकार चाहे तो सर्वे करा लें कि धनबाद एवं बोकारों में कौन से गावँ में भोजपुरी एवं मगही बोली जाती है। धनबाद एवं बोकारो खोरठा एवं कुड़मालि बाहुल्य क्षेत्र है। झारखंड में भोजपुरी, अंगिका, मैथली को क्षेत्रीय भाषा के रूप में झारखंडी कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। आप देश की संविधान को पढ़िए पता चल जाएगा कि जितने भी राज्यों की स्थापना की गई है। वह भाषा संस्कृति एवं भौगोलिक दृष्टि को देखते हुए की गई है।
इतिहास गवाह है भाषा के सवाल पर राज्य बंटा है। भाषा के सवाल पर देश बंटा है। आज आप देख रहे है हर जगह चौक चौराहे पर पुतला दहन हो रहा है। विरोध हो रहा है। गावँ गावँ में जनजागरण अभियान चलाया जा रहा है। सरकार के ही लोग विरोध कर रहे है। पूर्व विधायक पार्टी से इस्तीफा देने की बात कर रहे है। आखिर क्यों? क्योंकि आप झारखंडियों का इतिहास देखिये, झारखंडी लोग हमेशा से अपने जल, जमीन,जंगल एवं भाषा के लिए कभी भी समझौता नहीं किये है। आंदोलन झारखंडियों का इतिहास रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि वर्तमान सरकार के द्वारा भाषा पर इस तरह का निर्णय घोर आश्चर्यजनक है। जिसका शुरू से मायं,माटि आर मातृभाषा के रक्षा के लिए आंदोलन का इतिहास रहा है। मेरा अपना विचार है कि ये काफी संवेदनशील मुद्दा है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करने की सख्त जरूरत है।